Patna-1 (Bihar)
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पटना के गोलघर का इतिहास :

पटना का गोलघर, बिहार की राजधानी पटना में स्थित एक ऐतिहासिक और प्रमुख संरचना है।

पटना के  गोलघर का  इतिहास :

पटना का गोलघर, बिहार की राजधानी पटना में स्थित एक ऐतिहासिक और प्रमुख संरचना है। इसका निर्माण 1786 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में किया गया था। यह गोलाकर इमारत न केवल स्थापत्य 

कला का एक अद्भुत उदाहरण है, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी गहरा है।



गोलघर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य खाद्यान्न के भंडारण के लिए एक बड़े गोदाम का निर्माण करना था। 1770 में बंगाल में आए भीषण अकाल ने लाखों लोगों की जान ले ली थी।

 इस महासंकट के बाद  ब्रिटिश शासन ने ऐसे अकालों से निपटने के लिए खाद्य भंडारण की योजना बनाई। इसी योजना के अंतर्गत गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स ने पटना में गोलघर के निर्माण का आदेश दिया।

 इसे प्रसिद्ध ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने डिज़ाइन किया था  जो ब्रिटिश सेना में थे।

गोलघर का निर्माण 1784 में शुरू हुआ और 1786 में पूरा हुआ। इसका मूल उद्देश्य अनाज का भंडारण करना था ताकि किसी भी अकाल या आपातकालीन स्थिति में स्थानीय लोगों को भोजन की कमी न हो।

 गोलघर की संरचना अद्वितीय है यह बिना किसी स्तंभ के बना हुआ है और इसके गुंबद की मोटाई निचले भाग में 3.6 मीटर और ऊपरी भाग में 0.6 मीटर है। इसका व्यास लगभग 125 मीटर और ऊंचाई 29 मीटर है।



गोलघर की सबसे बड़ी विशेषता इसका गोलाकार आकार है  जो इसे एक अनूठी इमारत बनाता है। इस इमारत में कुल 145 सीढ़ियाँ हैं जो इसके बाहरी किनारे पर स्पाइरल (घुमावदार) आकार में बनाई गई हैं।

 ये सीढ़ियाँ इमारत के शीर्ष तक पहुंचाती हैं जहाँ से पूरे पटना शहर और गंगा नदी का मनोहारी दृश्य  दिखाई देता  है।

गोलघर का ढांचा ईंट और चूने के मिश्रण से बना है और इसके निर्माण में स्थानीय संसाधनों का ही उपयोग किया गया था। यह एक विशाल गुंबदाकार ढांचा है और इसे बिना किसी सहायक स्तंभ के बनाया गया है।

 इसके आकार और डिज़ाइन में बौद्ध स्तूपों की झलक दिखाई देती है जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक प्रभाव को दर्शाता है।

गोलघर की संरचना ऐसी है कि इसकी दीवारें अंदर से मोटी और ऊपर की ओर पतली होती जाती हैं। इस इमारत में प्रवेश करने का दरवाजा एक ही है, लेकिन अंदर से यह काफी विस्तृत है

 जिससे यह एक विशाल भंडारण गोदाम के रूप में कार्य कर सके।



 एक लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, जब इसका निर्माण हो रहा था तो इसके अंदर की ओर दीवारें इतनी अधिक चिकनी थीं

 कि कोई भी व्यक्ति आसानी से फिसल सकता था। हालांकि, इसका कोई प्रमाण नहीं है परंतु यह किस्सा गोलघर की अद्वितीय वास्तुकला और निर्माण कला की ओर इशारा करता है।

एक और कहानी यह भी है कि गोलघर के डिजाइन में एक छोटी सी खामी रह गई थी  जिसके कारण इसे कभी पूरी तरह से खाद्य से भरा नहीं जा सका। इसके द्वार का आकार इस तरह से बनाया गया

 कि जब यह पूरी तरह से भर जाता  तो द्वार खोलने में कठिनाई होती। इस वजह से गोलघर को कभी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं भरा गया।

इसके बावजूद गोलघर ने कभी अपने उद्देश्य को पूरी तरह से नहीं खोया। यह कई वर्षों तक खाद्यान्न भंडारण के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा और आज भी यह पटना का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है।



 गोलघर पटना के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इसके ऊपर से गंगा नदी, महेंद्रू घाट, और आस-पास के क्षेत्रों का दृश्य देखते ही बनता है। गोलघर के चारों ओर एक सुंदर पार्क भी है

 जहाँ लोग घूमने और परिवार के साथ समय बिताने आते हैं।

गोलघर का इतिहास  और छात्रों के लिए गोलघर एक महत्वपूर्ण अध्ययन स्थल है क्योंकि यह ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक और आर्थिक योजनाओं का जीवंत उदाहरण है। गोलघर के आसपास पटना संग्रहालय और अन्य ऐतिहासिक स्थल भी हैं

 जो इस क्षेत्र के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को समृद्ध करता  हैं।


गोलघर की संरचना के संरक्षण के लिए समय-समय पर इसे नवीनीकरण और मरम्मत की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है। 20वीं सदी के अंत में और 21वीं सदी की शुरुआत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस ऐतिहासिक

 धरोहर की देखभाल और पुनर्निर्माण के लिए कई प्रयास किए। इसका मुख्य उद्देश्य इस महत्वपूर्ण धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना था।

 गोलघर को एक संग्रहालय या सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करने की योजनाएँ भी समय-समय पर सामने  आती रहती  हैं, ताकि यह संरचना न केवल ऐतिहासिक महत्व की बनी रहे

 बल्कि स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सके।



पटना का गोलघर न केवल एक स्थापत्य आश्चर्य है बल्कि यह इतिहास की एक जिंदा मिसाल भी है। यह हमें ब्रिटिश शासन के दौरान के आर्थिक और प्रशासनिक पहलुओं की झलक देता है।

 गोलघर की संरचना, इसका उद्देश्य, और इससे जुड़ी कहानियाँ इसे और भी रोचक और महत्वपूर्ण बनाती हैं। आज यह पटना के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है और हर साल हजारो संख्या में लोग  इसे देखने आते हैं।

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